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Showing posts from September, 2018

क्या फर्क है दोनों में?

 खुली आंखों के सपने, बंद आंखों के सपने , क्या फर्क है दोनों में? सीपी में बंद मोती, मुट्ठी में बंद मोती, क्या फर्क है दोनों में? डाली पर बैठी मैना, पिंजरे में बंद मैना, क्या फर्क है दोनों में? सुख में बहते आंसू, दुख से बहते आंसू, क्या फर्क है दोनों में? मंदिर में जलता दिया,   दीपक से लगी आग, क्या फर्क है दोनों में? श्रद्धा से सिर का झुकना, शर्मिंदगी से सिर  का झुकना , क्या फर्क है दोनों में? फर्क है एहसास का, भावना और विश्वास का, पाने और खोने का , सृजन  और  संघार का.

पेट्रोल वाली पॉलिटिक्स

पेट्रोल और डीजल ने ऐसी आग लगाई, कोई भी युक्ति काम ना आई. जनता करे दुहाई- दुहाई, सरकार को कुछ भी दे न सुनाई. बीच बजरिया तेल निकल गया लोगों का, खूब मिला है बदला अपने वोटों का. रोज चढ़े है पारा इसका  ऊपर को, राम भरोसे छोड़ दिया है डीजल को. ईधन के बढ़ते हुए दाम रुलाते हैं, पेट्रोल,डीजल, गैस नींद में भी डराते हैं. सुरसा के मुख के जैसे रोज बढ़े हैं यह तो, खून पसीने की कमाई इसमें गई समाई, फिर भी कोई डकार ना आई. पाँच साल में एक बार जनता की बारी आई है, इस चक्कर में कितनाे ने अपनी सरकार गवाई है.

क्रोध विनाश का कारण है

विद्वानों ने कहा है कि यदि पीना है तो क्रोध को पीओ, क्रोध यह ऐसी अग्नि है जिसमें मनुष्य के सुख और शांति जलकर नष्ट हो जाते हैं. कहा गया है कि क्रोध में व्यक्ति का चुप रहना ही हितकर है. क्रोधी मनुष्य का अपनी वाणी पर अधिकार नहीं रहता है, जिसके फलस्वरुप वह अनर्गल और दिल को दुखाने वाली बातें करता है जो संबंधों में जहर का काम करती है. क्रोध के वशीभूत हुआ व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन पूरी तरह से खो देता है, उचित और अनुचित का विचार किए बिना उसके मुख से जो शब्द निकलते हैं. उनका कितना गहरा असर पड़ता है इसका उसे तनिक भी भान नहीं होता. क्रोध के कारण बनी बनाई बात भी हाथ से निकल जाती है. चुप रह कर और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करके क्रोध पर विजय प्राप्त की जा सकती है. जिस प्रकार समुद्र द्वारा अपनी मर्यादा लाघे जाने पर तबाही मचती है. उसी प्रकार क्रोध के वशीभूत व्यक्ति  भी अपनी मर्यादा लाघ जाता है. जिसका परिणाम लड़ाई झगड़ा और रिश्तो में बिखराव होता है. आपसी सम्मान के बिना कोई भी रिश्ता टिक नहीं सकता लेकिन क्रोध में सबसे ज्यादा नुकसान सम्मान को ही पहुंचता है. कहते हैं कि बातों का घाव कभी नहीं भरत...

क्षितिज के उस पार क्या है?

 प्रतिपल चलता अंतर्द्वंद, राह रोके खड़ी उलझन, स्थितियां कभी आदर्श नहीं होती. फिर भी पूछे अंतर्मन क्षितिज के उस पार क्या है? सांझ का धुंधलापन, दिनभर की थकन, संघर्ष ही सर्वस्व है. फिर भी पूछे अंतर्मन, क्षितिज के उस पार क्या है? नए दिन की नई चुनौती, प्रतिपल बदलता जीवन. लोग इतने बुरे भी नहीं हैं.  फिर भी पूछे अंतर्मन, क्षितिज के उस पार क्या है? सपनों के संसार के साथ, प्यार और विश्वास के साथ, निश्छल मन का अपनापन. फिर भी पूछे अंतर्मन क्षितिज के उस पार क्या है?

स्मृति शेष है

आगे बढ़ते कदमों के साथ , कितना कुछ पीछे छूट जाता है. बचपन की नादानियां, बालू के घरौंदे, परियों की कहानियां. जब हम नादान थे, तब जीवन जीना खूब आता था. आसमान में बादलों से बना चित्र, भी मन को खूब भाता था. जब बे मतलब ही मन खुश हो जाता था. नन्हे मन का सुंदर कोना, अब स्याह हो गया है. बड़े होते ही इंसान,  सबसे पहले हंसना भूल जाता है. आगे बढ़ते कदमों के साथ, जो भी पीछे छूट गया ,वह अनमोल था. भावनाओं से क्या होता है, जीवन चक्र अविरल चलता जाता है.

वोट बैंक है

नेताओं की भाषा में, प्रतिशत में गिने जाते हैं. हम भारत की जनता हैं, वोटबैंक कहलाते हैं. हिंदू और मुसलमान हो सकते हैं,  मुद्दों की दुकान हो सकते हैं. नेताजी के स्वार्थ के लिए, सारे कुर्बान हो सकते हैं. अगड़े वोट, पिछड़े वोट, हिंदू और मुसलमान वोट. सवर्ण और दलित वोट, आपस में लड़ते वोट, हम इंसान नहीं वोट है. नेताजी की कुर्सी का सपोर्ट है. पाँच साल में एक बार,  अपनी बारी आती है. जो भी सरकार चुनकर भेजो, वह रोज चूना लगाती है.

गुरुवे नमः

प्रतिवर्ष 5 सितंबर को भारत शिक्षक दिवस मनाता है. 5 सितंबर भारत के द्वितीय राष्ट्रपति एवं शिक्षक तथा दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन(1888-1975) का जन्मदिवस है. इस दिन शिक्षकों का सम्मान किया जाता है. डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जिनका यह सपना था कि सबसे अच्छे मस्तिष्क वाले लोग ही शिक्षक बने.  किंतु आज के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा और स्कूल की अवधारणा इतनी बदल गई है कि इसने गुरु शिष्य परंपरा के आधार पर कठोर प्रहार किया है. जो हमारे मनस्वी शिक्षकों की अवधारणा से मेल नहीं खाती. शिक्षा प्रणाली में विश्वसनीयता और मिलजुल कर कार्य करने की इच्छा समाप्त होती जा रही है. आजकल अधिक अंक लाकर प्रतिष्ठित स्कूलों और कॉलेजों में प्रवेश पाने पर अधिक जोर दिया जाता है जिसके परिणाम स्वरुप विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क पर गहरा आघात लगता है. जो विद्यार्थियों को स्वार्थी बनाती है. वर्तमान समय में शिक्षा सेवा का क्षेत्र ना होकर लाभ कमाने का एक जरिया बन गई है. उद्योगपतियों को शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त लाभ दिखाई देता है जिसने इसे एक व्यवसाय का रूप दे दिया है. इसकी वजह से समाज पर बहुत गंभीर प्रभाव पड...

अंतर्मन

जिंदगी की कशमकश, उबड़ खाबड़ रास्ते, सूखे तपते रेगिस्तान सा जीवन, अमृत कलश कहां है? कोमल मन पर लगी चोटें, लहूलुहान मन, अंतर्मन का सूनापन, वीणा की झंकार कहां है? मिलते ,बिछड़ते लोग, स्वार्थ और आडंबर,  सूखे पत्ते सा जीवन, रिश्तो का संसार कहां है? लू की तपन, हिम की ठिठुरन, बाढ़ मे डूबता तन-मन, वह सुंदर ऋतुराज कहां है? भाव और अभाव के बीच, दुख और सुख, आंखों से बहते आंसू, स्नेह और प्यार कहां है?

भारतीय संस्कृति और प्रकृति की उपासना

भारतीय संस्कृति में हमें बचपन से प्रकृति की उपासना करना सिखाया जाता है. हम एक ऐसी सांस्कृतिक परंपरा के वाहक हैं जहां पृथ्वी, जल, पर्वत ,अग्नि आकाश ,सूर्य और चंद्र सभी की पूजा की जाती है. यह उस भावना का द्योतक है की प्रकृति सर्वश्रेष्ठ है जिसके कारण संपूर्ण पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व संभव है. यहां नदियों की पूजा देवी के रूप में की जाती है. इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मोक्षदायिनी गंगा है जो हमारा लोक और परलोक दोनों सुधारती हैं.  हम धरती की उपासना माता के रूप में करते हैं इसके पीछे की अवधारणा शायद यह रही होगी कि जिस मिट्टी ने हमें जीवन जीने के लिए आवश्यक सभी अवयव प्रदान किए हैं उनसे ज्यादा पूजनीय हमारे लिए क्या हो सकता है. नीम ,तुलसी ,वट ,पीपल ऐसे कितने ही वृक्ष है जिनमें देवताओं का निवास स्थान होने की बात कही गई है. आज भी भारतीय परंपरा में इनकी पूजा की जाती है. इसके पीछे का मुख्य कारण इनका मनुष्य के लिए लाभप्रद होना है. जिसे प्राचीन महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से धर्म के साथ जोड़कर इनके संरक्षण को सुनिश्चित किया. ऐसे कई प्राचीन ग्रंथ है जिनमें पशु हत्या की निंदा की गई है. आज भी हम...

चार्वाक दर्शन- भौतिकतावादी विचारधारा

 दर्शन की एक अलग ही परिभाषा देने वाले ऋषि चार्वाक जिन्होंने भौतिकतावादी विचारों का समर्थन किया, चार्वाक सिद्धांत चार तत्वो पृथ्वी, जल अग्नि एवं वायु को मान्यता प्रदान करता है. चार्वाक के अनुसार मनुष्य एवं अन्य जीवों की चेतना इन्हीं मौलिक तत्वों के परस्पर मेल से उत्पन्न होती है. चार्वाक दर्शन मूलतः नास्तिकता वादी और अनीश्वरवादी है. ईसा पूर्व 500 से सन 300 के बीच मिश्रित अर्थव्यवस्था और समाज में भौतिकतावादी दर्शन पर बल दिया गया जो चार्वाक दर्शन में परिलक्षित होता है. चार्वाक एक क्रांतिकारी विचारक थे जिन्होंने ब्राह्मणवादी सत्ता को चुनौती दी. वह ब्रह्म और ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते थे. चार्वाक के अनुसार ब्राह्मणों ने दक्षिणा प्राप्त करने के लिए अनुष्ठानों का निर्माण किया. चार्वाक दर्शन को लोकायत के रूप में भी जाना जाता है जिसका अर्थ है आम लोगों से प्राप्त विचार. इसमें वर्तमान दुनिया के साथ गहरे संबंध के महत्व पर बल दीया गया है और दूसरी दुनिया यानी परलोक में अविश्वास प्रकट किया गया है. चार्वाक आध्यात्मिक मोक्ष प्राप्ति के विरोधी थे उन्होंने किसी भी दिव्य अलौकिक शक्ति क...