भारतीय संस्कृति और प्रकृति की उपासना

भारतीय संस्कृति में हमें बचपन से प्रकृति की उपासना करना सिखाया जाता है. हम एक ऐसी सांस्कृतिक परंपरा के वाहक हैं जहां पृथ्वी, जल, पर्वत ,अग्नि आकाश ,सूर्य और चंद्र सभी की पूजा की जाती है. यह उस भावना का द्योतक है की प्रकृति सर्वश्रेष्ठ है जिसके कारण संपूर्ण पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व संभव है. यहां नदियों की पूजा देवी के रूप में की जाती है. इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण मोक्षदायिनी गंगा है जो हमारा लोक और परलोक दोनों सुधारती हैं.

 हम धरती की उपासना माता के रूप में करते हैं इसके पीछे की अवधारणा शायद यह रही होगी कि जिस मिट्टी ने हमें जीवन जीने के लिए आवश्यक सभी अवयव प्रदान किए हैं उनसे ज्यादा पूजनीय हमारे लिए क्या हो सकता है.

नीम ,तुलसी ,वट ,पीपल ऐसे कितने ही वृक्ष है जिनमें देवताओं का निवास स्थान होने की बात कही गई है. आज भी भारतीय परंपरा में इनकी पूजा की जाती है. इसके पीछे का मुख्य कारण इनका मनुष्य के लिए लाभप्रद होना है. जिसे प्राचीन महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से धर्म के साथ जोड़कर इनके संरक्षण को सुनिश्चित किया.

ऐसे कई प्राचीन ग्रंथ है जिनमें पशु हत्या की निंदा की गई है. आज भी हम गाय को माता के स्थान पर रखते हैं उसकी पूजा करते हैं. गाय के दूध से लेकर घी ,दही गोमूत्र और गोबर सभी पवित्र माने जाते हैं. हिंदू विचारधारा में पंचगव्य को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.

भारतीय संस्कृति में पारिस्थितिकी और पर्यावरण में सामंजस्य बिठाने का प्रयत्न किया गया है. पर्यावरण जिसका मतलब है प्रकृति और मनुष्य द्वारा निर्मित परिवेश. पारिस्थितिकी मनुष्यो ,पौधों और विभिन्न जानवरों के बीच संबंध को दर्शाता है.

मनुष्य के द्वारा निर्मित संरचनाओं और प्रयत्नों से पर्यावरण पर सीधा असर पड़ता है. प्राकृतिक संसाधनों के दोहन के बिना हम मानव विकास की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. प्रकृति के साथ मानवीय संघर्ष के बिना मानव समाज आगे नहीं बढ़ सकता है. भारतीय संस्कृति हमें पर्यावरण और पारिस्थितिकी के बीच सामंजस्य बिठाकर चलना सिखाती है.

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