स्मृति शेष है

आगे बढ़ते कदमों के साथ ,
कितना कुछ पीछे छूट जाता है.
बचपन की नादानियां, बालू के घरौंदे,
परियों की कहानियां.

जब हम नादान थे,
तब जीवन जीना खूब आता था.
आसमान में बादलों से बना चित्र,
भी मन को खूब भाता था.
जब बे मतलब ही मन खुश हो जाता था.

नन्हे मन का सुंदर कोना,
अब स्याह हो गया है.
बड़े होते ही इंसान,
 सबसे पहले हंसना भूल जाता है.

आगे बढ़ते कदमों के साथ,
जो भी पीछे छूट गया ,वह अनमोल था.
भावनाओं से क्या होता है,
जीवन चक्र अविरल चलता जाता है.

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