गुरुवे नमः
प्रतिवर्ष 5 सितंबर को भारत शिक्षक दिवस मनाता है. 5 सितंबर भारत के द्वितीय राष्ट्रपति एवं शिक्षक तथा दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन(1888-1975) का जन्मदिवस है. इस दिन शिक्षकों का सम्मान किया जाता है. डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जिनका यह सपना था कि सबसे अच्छे मस्तिष्क वाले लोग ही शिक्षक बने.
किंतु आज के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा और स्कूल की अवधारणा इतनी बदल गई है कि इसने गुरु शिष्य परंपरा के आधार पर कठोर प्रहार किया है. जो हमारे मनस्वी शिक्षकों की अवधारणा से मेल नहीं खाती. शिक्षा प्रणाली में विश्वसनीयता और मिलजुल कर कार्य करने की इच्छा समाप्त होती जा रही है. आजकल अधिक अंक लाकर प्रतिष्ठित स्कूलों और कॉलेजों में प्रवेश पाने पर अधिक जोर दिया जाता है जिसके परिणाम स्वरुप विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क पर गहरा आघात लगता है. जो विद्यार्थियों को स्वार्थी बनाती है.
वर्तमान समय में शिक्षा सेवा का क्षेत्र ना होकर लाभ कमाने का एक जरिया बन गई है. उद्योगपतियों को शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त लाभ दिखाई देता है जिसने इसे एक व्यवसाय का रूप दे दिया है. इसकी वजह से समाज पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ा है. वह शिक्षा जिस पर प्रत्येक बालक का समान अधिकार है, आज बहुत ही महंगी हो गई है. और एक सामान्य इंसान अपने बच्चों को उस प्रकार की शिक्षा प्रदान नहीं कर पाता है जैसी वह चाहता है क्योंकि यह उसकी पहुंच से बाहर हो गई है.
गुरु शिष्य परंपरा का ह्रास होने से समाज का नैतिक पतन हुआ है. आज के बालकों में अपने गुरु के लिए वह सम्मान और आदर नहीं दिखाई पड़ता जो पहले के शिष्य अपने गुरु को देते थे. विद्यार्थी आजकल एक ऐसे विश्व में रह रहे हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है. जहां तकनीकी पर निर्भरता बहुत बढ़ गई है सूचना माध्यमों में सभी तरह की सूचना उपलब्ध है.
21वी सदी में हमें शिक्षा, स्कूल ,पाठ्यक्रम ,शिक्षक और विद्यार्थी को दुबारा परिभाषित करने की आवश्यकता है. जहां सबसे महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित करना है कि विद्यार्थियों को सफलता के लिए किस प्रकार शिक्षित किया जाए.
किंतु आज के परिप्रेक्ष्य में शिक्षा और स्कूल की अवधारणा इतनी बदल गई है कि इसने गुरु शिष्य परंपरा के आधार पर कठोर प्रहार किया है. जो हमारे मनस्वी शिक्षकों की अवधारणा से मेल नहीं खाती. शिक्षा प्रणाली में विश्वसनीयता और मिलजुल कर कार्य करने की इच्छा समाप्त होती जा रही है. आजकल अधिक अंक लाकर प्रतिष्ठित स्कूलों और कॉलेजों में प्रवेश पाने पर अधिक जोर दिया जाता है जिसके परिणाम स्वरुप विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क पर गहरा आघात लगता है. जो विद्यार्थियों को स्वार्थी बनाती है.
वर्तमान समय में शिक्षा सेवा का क्षेत्र ना होकर लाभ कमाने का एक जरिया बन गई है. उद्योगपतियों को शिक्षा के क्षेत्र में पर्याप्त लाभ दिखाई देता है जिसने इसे एक व्यवसाय का रूप दे दिया है. इसकी वजह से समाज पर बहुत गंभीर प्रभाव पड़ा है. वह शिक्षा जिस पर प्रत्येक बालक का समान अधिकार है, आज बहुत ही महंगी हो गई है. और एक सामान्य इंसान अपने बच्चों को उस प्रकार की शिक्षा प्रदान नहीं कर पाता है जैसी वह चाहता है क्योंकि यह उसकी पहुंच से बाहर हो गई है.
गुरु शिष्य परंपरा का ह्रास होने से समाज का नैतिक पतन हुआ है. आज के बालकों में अपने गुरु के लिए वह सम्मान और आदर नहीं दिखाई पड़ता जो पहले के शिष्य अपने गुरु को देते थे. विद्यार्थी आजकल एक ऐसे विश्व में रह रहे हैं जो बहुत तेजी से बदल रहा है. जहां तकनीकी पर निर्भरता बहुत बढ़ गई है सूचना माध्यमों में सभी तरह की सूचना उपलब्ध है.
21वी सदी में हमें शिक्षा, स्कूल ,पाठ्यक्रम ,शिक्षक और विद्यार्थी को दुबारा परिभाषित करने की आवश्यकता है. जहां सबसे महत्वपूर्ण यह सुनिश्चित करना है कि विद्यार्थियों को सफलता के लिए किस प्रकार शिक्षित किया जाए.
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