क्रोध विनाश का कारण है
विद्वानों ने कहा है कि यदि पीना है तो क्रोध को पीओ, क्रोध यह ऐसी अग्नि है जिसमें मनुष्य के सुख और शांति जलकर नष्ट हो जाते हैं. कहा गया है कि क्रोध में व्यक्ति का चुप रहना ही हितकर है. क्रोधी मनुष्य का अपनी वाणी पर अधिकार नहीं रहता है, जिसके फलस्वरुप वह अनर्गल और दिल को दुखाने वाली बातें करता है जो संबंधों में जहर का काम करती है.
क्रोध के वशीभूत हुआ व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन पूरी तरह से खो देता है, उचित और अनुचित का विचार किए बिना उसके मुख से जो शब्द निकलते हैं. उनका कितना गहरा असर पड़ता है इसका उसे तनिक भी भान नहीं होता. क्रोध के कारण बनी बनाई बात भी हाथ से निकल जाती है.
चुप रह कर और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करके क्रोध पर विजय प्राप्त की जा सकती है. जिस प्रकार समुद्र द्वारा अपनी मर्यादा लाघे जाने पर तबाही मचती है. उसी प्रकार क्रोध के वशीभूत व्यक्ति भी अपनी मर्यादा लाघ जाता है. जिसका परिणाम लड़ाई झगड़ा और रिश्तो में बिखराव होता है. आपसी सम्मान के बिना कोई भी रिश्ता टिक नहीं सकता लेकिन क्रोध में सबसे ज्यादा नुकसान सम्मान को ही पहुंचता है. कहते हैं कि बातों का घाव कभी नहीं भरता.
इस विषय में एक प्रसिद्ध सूक्ति इस प्रकार है-
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए,
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय.
कहने का मतलब हमें इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिससे ना सिर्फ हमारा मन प्रसन्न हो बल्कि इसके द्वारा दूसरों को भी खुशी प्राप्त हो.
क्रोध के वशीभूत हुआ व्यक्ति अपना मानसिक संतुलन पूरी तरह से खो देता है, उचित और अनुचित का विचार किए बिना उसके मुख से जो शब्द निकलते हैं. उनका कितना गहरा असर पड़ता है इसका उसे तनिक भी भान नहीं होता. क्रोध के कारण बनी बनाई बात भी हाथ से निकल जाती है.
चुप रह कर और अपनी भावनाओं को नियंत्रित करके क्रोध पर विजय प्राप्त की जा सकती है. जिस प्रकार समुद्र द्वारा अपनी मर्यादा लाघे जाने पर तबाही मचती है. उसी प्रकार क्रोध के वशीभूत व्यक्ति भी अपनी मर्यादा लाघ जाता है. जिसका परिणाम लड़ाई झगड़ा और रिश्तो में बिखराव होता है. आपसी सम्मान के बिना कोई भी रिश्ता टिक नहीं सकता लेकिन क्रोध में सबसे ज्यादा नुकसान सम्मान को ही पहुंचता है. कहते हैं कि बातों का घाव कभी नहीं भरता.
इस विषय में एक प्रसिद्ध सूक्ति इस प्रकार है-
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोए,
औरन को शीतल करे आपहु शीतल होय.
कहने का मतलब हमें इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करना चाहिए जिससे ना सिर्फ हमारा मन प्रसन्न हो बल्कि इसके द्वारा दूसरों को भी खुशी प्राप्त हो.
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