पेट्रोल वाली पॉलिटिक्स

पेट्रोल और डीजल ने ऐसी आग लगाई,
कोई भी युक्ति काम ना आई.

जनता करे दुहाई- दुहाई,
सरकार को कुछ भी दे न सुनाई.

बीच बजरिया तेल निकल गया लोगों का,
खूब मिला है बदला अपने वोटों का.

रोज चढ़े है पारा इसका  ऊपर को,
राम भरोसे छोड़ दिया है डीजल को.

ईधन के बढ़ते हुए दाम रुलाते हैं,
पेट्रोल,डीजल, गैस नींद में भी डराते हैं.

सुरसा के मुख के जैसे रोज बढ़े हैं यह तो,
खून पसीने की कमाई इसमें गई समाई,
फिर भी कोई डकार ना आई.

पाँच साल में एक बार जनता की बारी आई है,
इस चक्कर में कितनाे ने अपनी सरकार गवाई है.

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