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नेताजी का बायोडाटा

जनता को लगाके चुना पान जैसे खा गए खा गए जो, नेताजी की महिमा अपार बड़ी भारी है। खींचतान कुर्सी की करते ये महान लोग, बिछी हुई सत्ता की बिसात बड़ी भारी है। पहले बांटा जातियों में फिर उप जातियों में, सोच विषधर की फुफकार बड़ी भारी है‌। सेवा के नाम पर जो मेवा खाएं रात दिन, इनकी पाचन शक्ति की मिसाल बड़ी भारी है। बात करें वंचितों की रोटी सेकें लाश पर जो, बड़े-बड़े बंगलों में रहते  खादीधारी हैं। शाम दाम दंड भेद आयुध रखे तरकश में, छुरा घोंपें पीठ में पीठ में जो छल के पुजारी हैं। बाप हैं विभीषण के शकुनि के मामा है जो, इनकी महागाथा तो वेदों से भी भारी है। बीज बोए झूठ के वादों की जो खाद डालें, जुमलों की वर्षा करें ऐसे धनुर्धारी हैं। पक्ष में विपक्ष में खड़े हुए जो बोल रहे, मातृभूमि नहीं इन्हें अपनी कुर्सी प्यारी है।                                                     (प्रिय पाठकों चुनाव का समय नजदीक आ रहा आ रहा है। तरह-तरह के नेतागण चुनाव ...

एक औरत का आत्मनिर्भर होना क्यों आवश्यक है

आत्मनिर्भर यह केवल एक शब्द नहीं है, अपितु प्रतीक है स्वतंत्र होने की, स्वाभिमान की, कुंजी है सुख की। अगर आप आत्मनिर्भर नहीं हैं उस अवस्था में आप अपना कोई भी फैसला स्वयं नही कर सकते, जिसके फलस्वरूप धीरे-धीरे आत्मविश्वास में  कमी आती जाती है। संपूर्ण विश्व में सबसे ज्यादा अत्याचार औरतों पर ही हुए हैं, चाहे वह किसी किसी भी, जाति या फिर धर्म से क्यों ना आती हो। जब एक तीन या चार साल की बच्ची को सबसे पहले उसकी दादी द्वारा यह बताया जाता है कि तुम लड़की हो तुम्हें यह काम नहीं करना चाहिए उसी दिल से उसके पैरों में धीरे धीरे बेड़ियां पहनानी शुरु कर दी जाती हैं, और उसे यह बताया जाता है कि वह कोई भी कार्य बिना दूसरों की मदद से नहीं कर कर सकती है। यह भेदभाव सारी उम्र होता रहता है। ऐसा बहुत ही कम घरों में होता है जहां एक लड़की को लड़कों के ही बराबर समान अवसर उपलब्ध हो। एक पिता का परम कर्तव्य अपनी पुत्री के लिए एक सुयोग्य घर और वर का चयन करके उसका विवाह करना ही होता है। जो पिता अपनी पुत्री को आत्मनिर्भर करने के बजाय किसी और के हाथों में अपनी संतान की बागडोर  सौंप देते हैं , वहीं सबसे बड़े...

मैं नागफनी हूँ

तपते हुए रेगिस्तान के बीच में, ठूठ सी खड़ी , मैं नागफनी हूं | नागफनी होना कैसा लगता है कभी सोचा है ? जिसके पास कोई नहीं आना चाहता है, अभाव में पली अमृत से वंचित नागफनी, कांटों से ढकी धूप में झुलसती नागफनी, जीवन के लिए लड़ती प्रतिपल संघर्ष करती, मैं जिजीविषा का उत्कृष्ट प्रतीक हूं | मैं नागफनी हूं | संघर्ष करके ही मैंने जीवन पाया है| रेगिस्तान की धूप में पानी की एक भी बूंद के बिना,  सीना तानें खड़ी हूं | प्रतिपल लड़ती और जीतती हूं मैं| मैं नागफनी हूं | बंजर में जीवन का प्रतीक संघर्ष की पराकाष्ठा हूं | मैं खूबसूरत नहीं मैं कोमल नहीं मैं कांटों से भरी हूं | मेरा जीवन ही प्रतिकार है | कठिनाइयों और बाधाओं का, मैंने हारना सीखा नहीं | उस प्रचंड सूर्य की भीषण ज्वाला से, उन बिना जल के मेघों से | ककरीली पथरीली भूमि में भी, मैं रस खोज लेती हूं | मैं नागफनी हूं | मैं  विजयगान हूं कर्मठता का| मैं उत्तर हूं उपेक्षा और अभाव का | मैं शुन्य में कुछ होने का एहसास हूं| मैं नागफनी हूं|

यह जीवन है

हो सकता है अपने कदमों के निशान छोड़ ना पाए हम, लेकिन इस डर से चलना तो छोड़ नहीं सकते | यह माना कि अनहोनी पर जोर नहीं अपना, पर ऐसा भी क्या ? किसी के आंसू पोछ नहीं सकते | माना हर सपना पूरा नहीं होता इस जहां में, इस डर से अपना सपना तो छोड़ नहीं सकते | मौत तो आनी है हर किसी को एक दिन , मौत के डर से जीना तो छोड़ नहीं सकते  | जाने के बाद इस जहां से याद रहे ना हमारी, इस डर से हर रिश्ता तो तोड़ नहीं सकते  ? खाली हाथ आए थे खाली हाथ जाएंगे , पर ! कर्तव्य पथ पर चलना तो छोड़ नहीं सकते | यह जीवन है संघर्ष के पथ पर चलना ही पड़ेगा , बाधाओं के डर से निर्णय से मुख मोड़ नहीं सकते |

अतीत का मोह कितना सही?

हम में से बहुत लोग प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रति आग्रही हैं और कुछ लोग भारत के गौरवशाली अतीत से भावनात्मक रूप से प्रभावित हैं| वे प्राचीन समाज और संस्कृति की पुरानी व्यवस्था को फिर से स्थापित करना चाहते हैं उनके विचार से ऐसा करने से बहुत सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा| इसमें कोई शक नहीं कि अतीत काल में लोगों ने विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय प्रगति की लेकिन वर्तमान समय के आधुनिक विज्ञान और तकनीकी की बराबरी यह किसी भी स्थिति में नहीं कर सकती है| वृहद परिप्रेक्ष्य में हम इस बात की अनदेखी बिल्कुल भी नहीं कर सकते हैं की प्राचीन भारतीय समाज में सामाजिक अन्याय भी प्रमुखता से विद्यमान था| वर्ण व्यवस्था में निचले पायदान पर खड़े लोगो विशेषकर शुद्राें और अतिशूद्रों( अस्पृश्य) को जिस प्रकार नीरीह बना दिया गया था | जिस प्रकार उनके साथ पशुओं की तरह व्यवहार किया जाता था उसकी हम आज के संदर्भ में परिकल्पना भी नहीं कर सकते हैं| इसके अतिरिक्त न्याय व्यवस्था और महिलाओं के साथ भेदभाव की प्रथा भी पुरुष प्रधान समाज के पक्ष में कार्य करती थी| इसका अर्थ यह है कि अतीत की तरफ जाने का मतलब है ...

विभिन्नता में एकता भारतीय सभ्यता का पोषक मत

लिखने की कुशलता प्राप्त करने के बाद मनुष्य को सभ्य माना जाने लगा| आज भारत में लेखन की जितनी भी शैलियां प्रचलित है सभी प्राचीन लिपियों से विकसित हुई है| संपूर्ण विश्व में प्रचलित सभी भाषाओं के लिए यह बात समान रूप से सत्य हैं|  आज की सभ्यता कई शताब्दियों के विकास का परिणाम है| हम सभी अक्सर भारत में विभितता में एकता की बात करते हैं, लेकिन इस विचार का पोषण कहां से हुआ यह तथ्य काफी रोचक है| आर्यों के के बाद ग्रीक, इंडो आर्य सीथियन, हूण,तुर्क आदि ने किसी न किसी कारणवश भारत को अपना घर बनाया| इन सभी ने भारत की सामाजिक, साहित्यिक, कला एवं शिल्प आदि के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया| उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक के सांस्कृतिक तत्वों का सम्मिलन भारतीय संस्कृति की एक खास विशेषता है| प्राचीन समय से ही भारत कई धर्मों की भूमि रहा है| भारत में ब्राह्मण या हिंदू धर्म, जैन और बौद्ध धर्म का जन्म हुआ, किंतु इन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्होंने टकराव का रास्ता न चुनकर आपस में सामंजस्य और संवाद स्थापित किया| हमारा देश विविधताओं के बावजूद अपनी अंतर्निहित गहरी एकता को दर्शाता ...

क्या फर्क है दोनों में?

 खुली आंखों के सपने, बंद आंखों के सपने , क्या फर्क है दोनों में? सीपी में बंद मोती, मुट्ठी में बंद मोती, क्या फर्क है दोनों में? डाली पर बैठी मैना, पिंजरे में बंद मैना, क्या फर्क है दोनों में? सुख में बहते आंसू, दुख से बहते आंसू, क्या फर्क है दोनों में? मंदिर में जलता दिया,   दीपक से लगी आग, क्या फर्क है दोनों में? श्रद्धा से सिर का झुकना, शर्मिंदगी से सिर  का झुकना , क्या फर्क है दोनों में? फर्क है एहसास का, भावना और विश्वास का, पाने और खोने का , सृजन  और  संघार का.