एक औरत का आत्मनिर्भर होना क्यों आवश्यक है

आत्मनिर्भर यह केवल एक शब्द नहीं है, अपितु प्रतीक है स्वतंत्र होने की, स्वाभिमान की, कुंजी है सुख की। अगर आप आत्मनिर्भर नहीं हैं उस अवस्था में आप अपना कोई भी फैसला स्वयं नही कर सकते, जिसके फलस्वरूप धीरे-धीरे आत्मविश्वास में  कमी आती जाती है।

संपूर्ण विश्व में सबसे ज्यादा अत्याचार औरतों पर ही हुए हैं, चाहे वह किसी किसी भी, जाति या फिर धर्म से क्यों ना आती हो। जब एक तीन या चार साल की बच्ची को सबसे पहले उसकी दादी द्वारा यह बताया जाता है कि तुम लड़की हो तुम्हें यह काम नहीं करना चाहिए उसी दिल से उसके पैरों में धीरे धीरे बेड़ियां पहनानी शुरु कर दी जाती हैं, और उसे यह बताया जाता है कि वह कोई भी कार्य बिना दूसरों की मदद से नहीं कर कर सकती है।
यह भेदभाव सारी उम्र होता रहता है। ऐसा बहुत ही कम घरों में होता है जहां एक लड़की को लड़कों के ही बराबर समान अवसर उपलब्ध हो। एक पिता का परम कर्तव्य अपनी पुत्री के लिए एक सुयोग्य घर और वर का चयन करके उसका विवाह करना ही होता है। जो पिता अपनी पुत्री को आत्मनिर्भर करने के बजाय किसी और के हाथों में अपनी संतान की बागडोर  सौंप देते हैं , वहीं सबसे बड़े अपराधी हैं।

एक औरत पर सबसे अधिक अधिक अत्याचार केवल इसी लिए होता है क्योंकि वह वह आत्म निर्भर नहीं होती है। वह अपने लिए कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं।आर्थिक रूप से अक्षम होने के कारण वह अत्याचार सहने के लिए मजबूर हैं।
परिवार में एक गृहणी का स्थान सबसे नीचे होता है जिस के ढेर सारे कर्तव्य हैं, लेकिन अधिकार कुछ भी नहीं है। पुरुषवादी मानसिकता को संतुष्ट करने के लिए एक औरत कोअपना सारा जीवन ,खुशियां, इच्छाएं सब कुछ होम करनी पड़ती है, उसके बाद भी वह खाली हाथ ही रह जाती है।

जिस समाज में एक औरत पहले पिता फिर पति और अंत में बेटे के आश्रित हो वह खुश होगी इसकी कल्पना भी करना निरर्थक है। अगर  आप अपने फैसले स्वयं नहीं ले सकते हैं, ऐसी स्थिति में आप एक स्वाभिमान पूर्ण जीवन नहीं जी सकते  हैं । एक औरत का आत्मनिर्भर होना उसके संपूर्ण जीवन का आत्मनिर्भर होना है, तब कोई उसे बिना वजह अपमानित नहीं कर सकता है, और वह अपने साथ होने वाले मानसिक और शारीरिक अत्याचार का खुलकर मुकाबला कर सकती है।

आज के आधुनिक युग में भी औरत को सफल होने के लिए बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ता है, यह धारा के विपरीत तैरने जैसा है। इस पुरुषवादी समाज में एक औरत के लिए अपना
स्थान बनाना जितना दुष्कर है, उतना ही आवश्यक भी है। औरत के ऊपर इतने अधिक अत्याचार केवल इसी लिए होते हैं क्योंकि सबको पता है कि उसके पास इसे सहने के अलावा
दूसरा कोई विकल्प नहीं है। अधिकतर मामलों में एक लड़की के साथ उसके  माता-पिता भी खड़े नहीं रहते हैं, उन्हें अपनी संतान से ज्यादा समाज की चिंता  रहती है।
जब वह अपनी संतान को एक समझौते भरी जिंदगी की ओर धकेलते हैं, ताकि उनके सम्मान कोई आंच ना आए।

अपने स्वाभिमान के लिए ताकि किसी को भी समझौते भरी जिंदगी ना जीने पड़े एक औरत का आत्मनिर्भर होना बहुत ही आवश्यक है। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना एक औरत के लिए उतना ही आवश्यक जितना शरीर के लिए प्राण वायु। बिना आत्मनिर्भर हुए आप एक समाज में एक परिवार में और एक व्यक्ति के रूप में नागण्य है।

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