विभिन्नता में एकता भारतीय सभ्यता का पोषक मत

लिखने की कुशलता प्राप्त करने के बाद मनुष्य को सभ्य माना जाने लगा| आज भारत में लेखन की जितनी भी शैलियां प्रचलित है सभी प्राचीन लिपियों से विकसित हुई है| संपूर्ण विश्व में प्रचलित सभी भाषाओं के लिए यह बात समान रूप से सत्य हैं|  आज की सभ्यता कई शताब्दियों के विकास का परिणाम है|

हम सभी अक्सर भारत में विभितता में एकता की बात करते हैं, लेकिन इस विचार का पोषण कहां से हुआ यह तथ्य काफी रोचक है| आर्यों के के बाद ग्रीक, इंडो आर्य
सीथियन, हूण,तुर्क आदि ने किसी न किसी कारणवश भारत को अपना घर बनाया| इन सभी ने भारत की सामाजिक, साहित्यिक, कला एवं शिल्प आदि के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया| उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम तक के सांस्कृतिक तत्वों का सम्मिलन भारतीय संस्कृति की एक खास विशेषता है|

प्राचीन समय से ही भारत कई धर्मों की भूमि रहा है| भारत में ब्राह्मण या हिंदू धर्म, जैन और बौद्ध धर्म का जन्म हुआ, किंतु इन की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्होंने टकराव का रास्ता न चुनकर आपस में सामंजस्य और संवाद स्थापित किया| हमारा देश विविधताओं के बावजूद अपनी अंतर्निहित गहरी एकता को दर्शाता है|

प्राचीन भारतीय कवि, दार्शनिक और लेखक सभी ने भारतवर्ष का चित्रण एक अखंड इकाई के रूप में किया है| वे इस भूखंड को हिमालय से लेकर समुद्र तक एक छत्र फैले हुए विस्तृत साम्राज्य के रूप में देखते थे| जिन
राजाओं ने हिमालय से लेकर दक्षिण में सागर तट तक
और पूरब में ब्रह्मपुत्र घाटी से लेकर पश्चिम में सिंधु से आगे तक अपनी सीमा बढ़ाने की कोशिश की उनकी सर्वत्र प्रशंसा की गई और उन्हें चक्रवर्ती कहा गया| प्राचीन समय में ऐसी राजनैतिक एकता कम से कम दो बार स्थापित हुई |ई.पू. तीसरी शताब्दी में अशोक ने दुरंत दक्षिण को छोड़कर पूरे भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार किया| अशोक के शिलालेख भारत, पाकिस्तान के अधिकतम हिस्सों से लेकर अफगानिस्तान तक अलग अलग मिलते हैं| इसके बाद चौथी सदी में समुद्रगुप्त ने गंगा से लेकर तमिल भूमि  तक की विजय यात्रा की|  विजेताओं और सांस्कृतिक दिग्दर्शको की नजर में भारत की भौगोलिक सीमा को एक समग्र इकाई के रूप में देखा गया| जब विदेशी पहली बार सिंध  या इंडस नदी के किनारे रहने वाले लोगों के संपर्क में आए तो उन्होंने पूरे देश का नाम इसी नदी के नाम पर रख दिया| इंडस नदी के किनारे बसा इंडिया | ईरानी शिलालेखों में  हिंदू की चर्चा  इंडस पर  स्थित एक जिले के रूप में है | इसलिए  पुराने समय में  हिंदू का तात्पर्य  एक प्रादेशिक इकाई के रूप में था  ना कि किसी धर्म या समुदाय के प्रतीक रूप में|  हिंद या हिंदू शब्द संस्कृत के सिंधु से लिया गया है इसी आधार पर इस देश का नाम इंडिया पड़ा जो ग्रीक लोगों की देन है इंडस नदी के किनारे बसा इंडिया| फारसी और अरबी भाषा में इंडिया को हिंद कहा गया| उत्तर कुषाण काल में ईरानी शासकों ने सिंध क्षेत्र पर जीत हासिल की और इसका नाम हिंदुस्तान रख दिया|

भाषा और संस्कृति की दृष्टि से भी भारत में एकता की भावना परिलक्षित होती है|ई.पू. तीसरी शताब्दी में प्राकृत भाषा ने भारत के बड़े हिस्सों में बोलचाल की भाषा का काम किया| अशोक के शिलालेख मुख्यतः ब्राह्मी लिपि और प्राकृत भाषा में लिखे गए| बाद में यही स्थान संस्कृत भाषा को मिला तब संस्कृत ने भारत के सुदूर हिस्सों में राजभाषा का काम किया|

 दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि रामायण और महाभारत जैसे प्राचीन महाकाव्य तमिल की धरती पर भी उतने ही उत्साह और भक्ति के साथ पढ़े गए जितने उत्तर भारत के विद्वानों के बीच| मूल रूप से संस्कृत में रचित इन महाकाव्यों का विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में संस्करण तैयार किए गए| इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और विचारों की अभिव्यक्ति चाहे जिस रूप में हो लेकिन उनका महत्व पूरे भारत में एक जैसा रहा|


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