बोया पेड़ बबूल का

मानसून इस समय अपने पूरे चरम पर है देश के लगभग हर इलाके में झमाझम बारिश हो रही है. मई और जून में  जो पारा47डिग्री तक पहुंच गया था वह नीचे आ गया है. मौसम खुशनुमा और हरियाली से भरा हुआ है अपने आसपास की हरियाली आंखों को सुकून दे रही है. लेकिन माफ करिएगा यह किसी शहरी इलाके की तस्वीर नहीं है यह तो भारत के किसी छोटे से गांव की कहानी है. जहां की तस्वीरें हमारी मीडिया नहीं दिखाती है .

अब बातें करते हैं हमारे महानगरों और नगरों की जहां मानसून की वजह से बाढ़ आई हुई है और चारों ओर तबाही का आलम है. क्या घर और क्या अस्पताल , स्कूल और कारखाने सभी दरिया में डूबे हुए हैं. आम आदमी तो आम आदमी नेताओं और मंत्रियों के बंगले थी इससे बच नहीं पाते हैं. बहुमंजिला इमारतें ताश के पत्तों की तरह धराशाई हो रही है हजारों करोड़ रुपए की लागत से बने एक्सप्रेस वे और हाईवे धस रहे हैं.

जब हम नदियों के बहाव क्षेत्र में बस्तियां बरसाते हैं. उनको पाटकर उनकी संरचना के साथ खिलवाड़ करते हैं तब हम यह नहीं सोचते हैं कि इसका दुष्परिणाम क्या होगा. मानसून के समय में जब नदियों के बहाव क्षेत्र में पानी भर जाता है तब हालात काबू से बाहर हो जाते हैं उस समय हम  बाढ़ और बर्बादी का हल्ला मचाते हैं और प्रशासन को कोसते हैं लेकिन इसमें आम नागरिक भी उतना ही भागीदार है जितना कि हमारा प्रशासन.

नगरों और महानगरों में ड्रेनेज सिस्टम सही ना होने की वजह से ही जलजमाव की ऐसी भयानक समस्या उत्पन्न होती है. जब स्वार्थवश अच्छी क्वालिटी के बजाय दोयम दर्जे के सामान का उपयोग इमारतें पुल और सड़कों के निर्माण में किया जाता है तभी स्थिति विपरीत होने पर दुर्घटना घटित हो जाती है.

  ऐसा लगता है कि हम सभी शिकायतों के पुतले हो गए हैं पहले हम प्रकृति को बर्बाद करते हैं और फिर रोना रोते हैं. आश्चर्य की बात तो यह है कि जिस देश में साल के लगभग 4 माह बारिश होती है जो देश नदियों का देश है. जहां गंगा यमुना गोदावरी ब्रम्हपुत्र जैसी बड़ी नदियों के अलावा ढेर सारी छोटी नदियां हैं वहां पर गर्मियां शुरू होते ही पानी की कमी शुरू हो जाती है. आज सहरों से तालाब गायब होते जा रहे हैं. उन्हें पाटकर इमारतें बन गई है.  आज के समय में मानसून के जल को इकट्ठा करने के पारंपरिक तरीके विलुप्त हो चुके हैं जिसका नतीजा जलजमाव के रूप में सामने आ रहा है. इसके अतिरिक्त वर्षा का अधिकतर जल गटर में बह जाता है.

  यह सब तब है  जब स्थिति सामान्य है अगर प्रकृति अपने रौद्र रूप में आ जाए तब उस स्थिति में हालात कितने भयानक हो जाएंगे हम इसका अनुमान लगा सकते हैं या शायद नहीं भी लगा सकते.

हम जिस घर में रहते हैं उसे कितना साफ सुथरा और व्यवस्थित रखते हैं, यह धरती भी हमारा घर है संपूर्ण जीव जगत का घर ऐसे में मनुष्य अपने स्वार्थ के लिए सब कुछ नष्ट कर रहा है लेकिन हम यह बात भूल जाते हैं कि प्रकृति ने हमें बनाया है . हमने प्रकृति को नहीं बनाया है और जो प्रकृति हमें बना सकती हैं अगर वह अपने भयानक रूप में आ जाए तो सब कुछ नष्ट भी कर सकती है.

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