जीवन
कितना सच और कितना झूठ,
जीवन तू है अजब अबूझ.
पकड़ते-पकड़ते छूट गई डोरी,
क्या खोया क्या पाया,
यही समझने में बीत गए,
कितने दिन साल और महीने.
यह आपाधापी,
यह अपने और पराए का भेद,
वह अपने जो परायों से भी बढ़कर है,
उनसे तुमने ही मिलवाया.
ढ़ेर सारी इच्छाएं और आकांक्षाएं,
कुंठा और आहत भावनाएं,
प्यार और दुलार भी है,
सपनों का संसार भी है.
रोज नई कड़ियां है जुड़ती .
बहते हुए नद सा जीवन,
कभी चंचल और निर्मल,
कभी शांत और शीतल,
कभी प्रचंड वेग से उठती लहरों की धार.
नहीं इसका कोई पारावार.
जीवन तू है अजब अबूझ.
पकड़ते-पकड़ते छूट गई डोरी,
क्या खोया क्या पाया,
यही समझने में बीत गए,
कितने दिन साल और महीने.
यह आपाधापी,
यह अपने और पराए का भेद,
वह अपने जो परायों से भी बढ़कर है,
उनसे तुमने ही मिलवाया.
ढ़ेर सारी इच्छाएं और आकांक्षाएं,
कुंठा और आहत भावनाएं,
प्यार और दुलार भी है,
सपनों का संसार भी है.
रोज नई कड़ियां है जुड़ती .
बहते हुए नद सा जीवन,
कभी चंचल और निर्मल,
कभी शांत और शीतल,
कभी प्रचंड वेग से उठती लहरों की धार.
नहीं इसका कोई पारावार.
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