चातुर्मास अध्यात्म से विज्ञान तक
भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में चातुर्मास का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. चातुर्मास का प्रारंभ आषाढ़ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि से होता है. इसे देव शयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस अवधि के दौरान सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु योग निद्रा के लिए चले जाते हैं. यह वह समय होता है जब सभी प्रकार के शुभ कार्य वर्जित होते हैं. चौमासे के समय व्रत और उपवास के माध्यम से शारीरिक और मानसिक स्वच्छता पर विशेष बल दिया जाता है. चातुर्मास में कई महत्वपूर्ण त्यौहार आते हैं. जिसमें गुरु पूर्णिमा ,रक्षाबंधन जन्माष्टमी, नवदुर्गा और दीपावली सभी सम्मिलित हैं. सावन मास में पड़ने वाले सोमवार भी इसी चौमासे के अंतर्गत आते हैं. जिसमें पूरा वातावरण पावन और शिव मय हो जाता है.
आधे आषाढ़ से लेकर आधे कार्तिक मास की अवधि को चातुर्मास या चौमासा कहते हैं. चातुर्मास का अंत कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को होता है . इसे देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं. धर्म के अनुसार इस समय मनुष्य को सादा भोजन और संयमित जीवन पद्धति का अनुसरण करना चाहिए. जिससे ईश्वर प्रसन्न होते हैं और मनुष्य को पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
यह तो हो गया चौमासे का आध्यात्मिक पक्ष लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं हमारे महान भारतीय मनीषियों ने स्वस्थ जीवन पद्धति को धर्म के साथ जोड़कर इसे आम लोगों की दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण अंग बना दिया. चौमासे के दौरान अपनायी गयी जीवन पद्धति को हम विज्ञान की कसौटी पर भी कस सकते हैं.
चातुर्मास का समय मुख्यतया बरसात का समय होता है जिस समय पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में मानसूनी वर्षा अपने चरमोत्कर्ष पर होती है. और सारा भारतवर्ष वर्षा के जल से सराबोर होता है. यह वह समय होता है जब गर्मी से जलती धरती को वर्षा अपनी बूंदों से सीचती है, इस समय आद्रता बहुत बढ़ जाती है . कभी सूरज पूरी तरह से बादलों में छुप जाता है तो कभी तेज धूप निकल आती है. यह समय संक्रमण काल का होता है . बीजो और वनस्पतियों के अंकुरण के लिए यह बिल्कुल उचित समय होता है लेकिन साथ ही इस मौसम में बैक्टीरिया और फंगस के विकास के लिए भी आदर्श स्थिति होती है. इस समय हमारा इम्यून सिस्टम ठीक से काम नहीं करता है. ऐसे समय में यदि हम सादा और सुपाच्य भोजन करें तो यह हमारे लिए काफी उपयोगी रहता है . चातुर्मास के समय में जब मौसम कभी बहुत सुहावना हो जाता है और कभी बिल्कुल उमस से भरा हुआ ऐसे समय में संयमित दिनचर्या हमें बीमार होने से बचाती है.
चातुर्मास यात्रा और आयोजनों के निषेध के पीछे का मुख्य कारण यह है कि यही वह समय होता है जब नदियां अपने पूरे उफान पर होती हैं. पहाड़ी झरने पूरे जोर के साथ गरज रहे होते हैं. पहाड़ों पर भूस्खलन की घटनाएं घट रही होती हैं और मैदानों में चारों ओर जल ही जल दिखाई देता है. ऐसे में किसी भी प्रकार की यात्रा के समय दुर्घटना होने की संभावना बढ़ जाती है.
वास्तव में चातुर्मास वह समय होता है जो मनुष्य को प्रकृति का सम्मान करने की शिक्षा देता है. जिसे हमारी महान ऋषि परंपरा ने चातुर्मास्य या चौमासे के रूप में हमारी जीवन पद्धति के साथ जोड़कर एक पर्व का रूप दे दिया है.
आधे आषाढ़ से लेकर आधे कार्तिक मास की अवधि को चातुर्मास या चौमासा कहते हैं. चातुर्मास का अंत कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को होता है . इसे देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जानते हैं. धर्म के अनुसार इस समय मनुष्य को सादा भोजन और संयमित जीवन पद्धति का अनुसरण करना चाहिए. जिससे ईश्वर प्रसन्न होते हैं और मनुष्य को पुण्य फल की प्राप्ति होती है.
यह तो हो गया चौमासे का आध्यात्मिक पक्ष लेकिन जैसा कि हम सभी जानते हैं हमारे महान भारतीय मनीषियों ने स्वस्थ जीवन पद्धति को धर्म के साथ जोड़कर इसे आम लोगों की दिनचर्या का एक महत्वपूर्ण अंग बना दिया. चौमासे के दौरान अपनायी गयी जीवन पद्धति को हम विज्ञान की कसौटी पर भी कस सकते हैं.
चातुर्मास का समय मुख्यतया बरसात का समय होता है जिस समय पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में मानसूनी वर्षा अपने चरमोत्कर्ष पर होती है. और सारा भारतवर्ष वर्षा के जल से सराबोर होता है. यह वह समय होता है जब गर्मी से जलती धरती को वर्षा अपनी बूंदों से सीचती है, इस समय आद्रता बहुत बढ़ जाती है . कभी सूरज पूरी तरह से बादलों में छुप जाता है तो कभी तेज धूप निकल आती है. यह समय संक्रमण काल का होता है . बीजो और वनस्पतियों के अंकुरण के लिए यह बिल्कुल उचित समय होता है लेकिन साथ ही इस मौसम में बैक्टीरिया और फंगस के विकास के लिए भी आदर्श स्थिति होती है. इस समय हमारा इम्यून सिस्टम ठीक से काम नहीं करता है. ऐसे समय में यदि हम सादा और सुपाच्य भोजन करें तो यह हमारे लिए काफी उपयोगी रहता है . चातुर्मास के समय में जब मौसम कभी बहुत सुहावना हो जाता है और कभी बिल्कुल उमस से भरा हुआ ऐसे समय में संयमित दिनचर्या हमें बीमार होने से बचाती है.
चातुर्मास यात्रा और आयोजनों के निषेध के पीछे का मुख्य कारण यह है कि यही वह समय होता है जब नदियां अपने पूरे उफान पर होती हैं. पहाड़ी झरने पूरे जोर के साथ गरज रहे होते हैं. पहाड़ों पर भूस्खलन की घटनाएं घट रही होती हैं और मैदानों में चारों ओर जल ही जल दिखाई देता है. ऐसे में किसी भी प्रकार की यात्रा के समय दुर्घटना होने की संभावना बढ़ जाती है.
वास्तव में चातुर्मास वह समय होता है जो मनुष्य को प्रकृति का सम्मान करने की शिक्षा देता है. जिसे हमारी महान ऋषि परंपरा ने चातुर्मास्य या चौमासे के रूप में हमारी जीवन पद्धति के साथ जोड़कर एक पर्व का रूप दे दिया है.
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