समरथ को नहिं दोष गुसाईं
जीवन धारा के विपरीत दिशा में तैरने का प्रतीक है. जब गोस्वामी जी कहते हैं कि- समरथ को नहिं दोष गुसाईं तो इसका सीधा सा मतलब यह है कि प्रकृति सर्वश्रेष्ठ और संघर्षशील को ही प्राथमिकता देती है. सच तो यह है कि संसार में जीवन का अस्तित्व शुरू होने से पहले मां के गर्भ में ही यह संघर्ष शुरू हो जाता है. जो कमजोर है उसे प्रकृति स्वयं नष्ट कर देती है.
इसके लिए हमें चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को समझना आवश्यक है जिसके अनुसार- सभी जीव जीवित रहने के लिए संघर्ष करते हैं भोजन, आवास और उचित वातावरण के लिए जीव धारियों में निरंतर संघर्ष होता रहता है. इस संघर्ष में वही जीव जीवित रह पाते हैं जो इस संघर्ष में सफल होते हैं. कमजोर जीव नष्ट हो जाते हैं. इसके अनुसार प्रकृति सर्वश्रेष्ठ का ही चुनाव करती है.
संस्कृत की सूक्ति-" वीर भोग्या वसुंधरा "के द्वारा हम इस बात को समझ सकते हैं. जिसका तात्पर्य यह है कि निडर और संघर्षशील व्यक्ति को ही इस धरती के सुखों को भोगने का अधिकार प्राप्त होता है. महान योद्धा और विश्व विजई सिकंदर महान को कौन नहीं जानता, सिकंदर में यदि लड़ाकू प्रवृत्ति और महत्वाकांक्षा ना होती तो आज हजारों साल बाद भी हम उसे याद ना रखते.
यहां सभी को अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी पड़ती है, कोई किसी की मदद नहीं करता हैं. रोने और शिकायत करने से अच्छा यह है कि हम अपने अधिकार के लिए लड़े बिना यह परवाह किए हुए की कौन क्या कह रहा है. जीवन केवल एक बार मिलता है हमें इससे जो अपेक्षाएं हैं उसे प्राप्त करने के लिए हमें खुद आगे बढ़ना होगा और संघर्ष करना पड़ेगा. इतिहास के पन्नों में केवल उन्हीं का नाम अंकित है जिन्होंने अपने लिए खुद रास्ता बनाया बिना यह सोचे हुए कि वहां उन्हें क्या मिलेगा. इसे हम निम्न पंक्तियों के माध्यम से समझ सकते हैं-
"लीक- लीक कायर चले लिकहिं चले कपूत
लीक छोड़ तीनहि चले शायर, सिंह ,सपूत"
बिना लड़े मरने से अच्छा है लड़कर मरना अगर जीत गए तो वह सब मिलेगा जो चाहिए और अगर मर गए तो भी कोई परवाह नहीं आखिर एक दिन तो सभी को मरना है.
जितने भी महान अविष्कार हुए ,जितनी भी महानतम क्रांतियां हुई हैं जिन्होंने पूरे संसार के स्वरूप को ही बदल दिया वह मनुष्य की इसी लड़ाकू और जुझारू प्रवृत्ति का नतीजा है.
शोषण और अत्याचार के समक्ष कभी भी सहनशील नहीं होना चाहिए इससे अत्याचारी की ताकत और हिम्मत और भी बढ़ जाती है. चुपचाप सहन करने और आंसू बहाने से अच्छा है डटकर मुकाबला करना. इतने सरल कभी मत बनिए कि दूसरे आपका फायदा उठाएं और फिर निकल जाएजाए.
इसके लिए हमें चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत को समझना आवश्यक है जिसके अनुसार- सभी जीव जीवित रहने के लिए संघर्ष करते हैं भोजन, आवास और उचित वातावरण के लिए जीव धारियों में निरंतर संघर्ष होता रहता है. इस संघर्ष में वही जीव जीवित रह पाते हैं जो इस संघर्ष में सफल होते हैं. कमजोर जीव नष्ट हो जाते हैं. इसके अनुसार प्रकृति सर्वश्रेष्ठ का ही चुनाव करती है.
संस्कृत की सूक्ति-" वीर भोग्या वसुंधरा "के द्वारा हम इस बात को समझ सकते हैं. जिसका तात्पर्य यह है कि निडर और संघर्षशील व्यक्ति को ही इस धरती के सुखों को भोगने का अधिकार प्राप्त होता है. महान योद्धा और विश्व विजई सिकंदर महान को कौन नहीं जानता, सिकंदर में यदि लड़ाकू प्रवृत्ति और महत्वाकांक्षा ना होती तो आज हजारों साल बाद भी हम उसे याद ना रखते.
यहां सभी को अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी पड़ती है, कोई किसी की मदद नहीं करता हैं. रोने और शिकायत करने से अच्छा यह है कि हम अपने अधिकार के लिए लड़े बिना यह परवाह किए हुए की कौन क्या कह रहा है. जीवन केवल एक बार मिलता है हमें इससे जो अपेक्षाएं हैं उसे प्राप्त करने के लिए हमें खुद आगे बढ़ना होगा और संघर्ष करना पड़ेगा. इतिहास के पन्नों में केवल उन्हीं का नाम अंकित है जिन्होंने अपने लिए खुद रास्ता बनाया बिना यह सोचे हुए कि वहां उन्हें क्या मिलेगा. इसे हम निम्न पंक्तियों के माध्यम से समझ सकते हैं-
"लीक- लीक कायर चले लिकहिं चले कपूत
लीक छोड़ तीनहि चले शायर, सिंह ,सपूत"
बिना लड़े मरने से अच्छा है लड़कर मरना अगर जीत गए तो वह सब मिलेगा जो चाहिए और अगर मर गए तो भी कोई परवाह नहीं आखिर एक दिन तो सभी को मरना है.
जितने भी महान अविष्कार हुए ,जितनी भी महानतम क्रांतियां हुई हैं जिन्होंने पूरे संसार के स्वरूप को ही बदल दिया वह मनुष्य की इसी लड़ाकू और जुझारू प्रवृत्ति का नतीजा है.
शोषण और अत्याचार के समक्ष कभी भी सहनशील नहीं होना चाहिए इससे अत्याचारी की ताकत और हिम्मत और भी बढ़ जाती है. चुपचाप सहन करने और आंसू बहाने से अच्छा है डटकर मुकाबला करना. इतने सरल कभी मत बनिए कि दूसरे आपका फायदा उठाएं और फिर निकल जाएजाए.
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