छोटी सी बात

प्राचीन भारतीय मान्यता के अनुसार हमारी पहली जिम्मेदारी राष्ट्रीय समाज के प्रति है, दूसरी जिम्मेदारी परिवार के प्रति और तीसरी खुद के प्रति. उस राष्ट्र और समाज का पतन होने लगता है जिसमें इसका क्रम उल्टा होने लगता है राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी हर नागरिक की नैतिक जिम्मेदारी होती है.

आज के समय में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या हमारे इसी नैतिक पतन की ओर इशारा करती है. आज हम सबसे पहले अपने बारे में सोचते हैं फिर परिवार के बारे में सोचते हैं. समाज और राष्ट्र तो हमारी सोच के अंदर आते ही नहीं. समाज में व्याप्त सारी बुराइयों की जड़ में हमारी यही सोच विद्यमान है. जब हम अपनी छोटी छोटी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं और यह कहते हैं कि सामने वाला नहीं कर रहा है तो हम क्यों करें यही से राष्ट्र का पतन शुरू होता है.

किसी भी समाज की बर्बादी गुंडे और मवाली यों की वजह से नहीं होती बल्कि अच्छे लोगों की निष्क्रियता की वजह से होती है. वह निकम्मे बनकर सारी बर्बादी सहते रहते हैं. वह अपनी सामाजिक जिम्मेदारी से मुंह मोड़ कर रखते हैं फिर वह अच्छा कैसे हो सकते

एडमंड बर्क ने कहा है

बुराई की जड़ जमाने के लिए इतना काफी है कि अच्छे लोग कुछ ना करें, बुराई जड़ पकड़ लेगी.

आज के समाज में व्याप्त हत्या , लूट, बलात्कार और आतंकवाद इसी कमजोरी का नतीजा है क्योंकि हम मूकदर्शक बनकर सब देखते रहते हैं और इसका प्रतिकार नहीं करते हैं. चुप रह कर हम किसी बुराई को मौन स्वीकृति प्रदान करते. समाज को बदलने के लिए हमें खुद बदलना होगा और बुरे को बुरा कहने की हिम्मत जुटानी पड़ेगी सभी यहां पर परिवर्तन की शुरुआत होगी.

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