अवैध घुसपैठ और एनआरसी
आजकल एनआरसी को मुद्दा सुर्खियों में है. कुछ लोग अल्पसंख्यकों के विरुद्ध इसे सरकार की साजिश बता रहे हैं आज इसी के बारे में बात करते हैं.
एनआरसी मतलब नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन शिप. जुलाई 2009 में एक गैर सरकारी संगठन असम लोक निर्माण a p w ने राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करने और मतदान सूची से उनके नामों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी इसके बाद कोर्ट ने इस काम को जल्द पूरा करने का आदेश दिया 31 दिसंबर 2017 को एनआरसी के पहले ड्राफ्ट का प्रकाशन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आर्डर दिया था.
एनआरसी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत अप्रत्यक्ष रुप से देश में गैर कानूनी तौर पर रह रहे विदेशी नागरिकों को खोजने का प्रयास किया जाता है असम राज्य में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों का पता लगाने के लिए असम में एनआरसी का पहला मसौदा जारी किया गया है. जिसमें मार्च 24, 1971 की मध्य रात्रि के बाद से अवैध रूप से राज्य में घुस आए बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान की कोशिश की जाएगी यह तारीख मूल रूप से 1985 के उस समझौते से मुकर्रर की गई थी जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार और असम स्टूडेंट्स यूनियन के बीच हस्ताक्षर किए गए थे
2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत में 3084826 बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं यदि सरकारी और मीडिया रिपोर्टों को ध्यान में रखे तो वर्ष 2003 में भारत में दो करोड़ अवैध बांग्लादेशी अपना डेरा जमा चुके थे. इसी तरह बहुत से रोहिंग्या मुसलमान भारत के विभिन्न भागों में रह रहे हैं.
असम और पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश के बंगाली मुसलमानों के अवैध प्रवास के कारण इन राज्यों में जनसांख्यिकीय बदलाव देखने को मिल रहा है जिस वजह से इन भारतीय राज्यों में गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं. इन सीमावर्ती राज्यों में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों के कारण ना केवल इन क्षेत्रों की जनसांख्यिकीय संरचना बदल गई है बल्कि भारत के लिए खतरनाक राजनीतिक और सामाजिक आर्थिक समस्याएं भी उत्पन्न हो गई हैं. भारत में बेहतर रोजगार के अवसर उपलब्ध होने और ज्यादा पारिश्रमिक मिलने के कारण बांग्लादेश से घुसपैठ को काफी बढ़ावा मिल रहा है. इसी प्रकार जाली दस्तावेजों की आसान उपलब्धता और भ्रष्ट नौकरशाही की मिलीभगत वोट बैंक की राजनीति के चलते इसको और भी सह मिल रही है. जब एक बार अवैध तरीकों से नागरिकता हासिल कर ली जाती है . तो भारत जैसे अत्यंत विशाल और अधिक आबादी वाले देश में किसी प्रकार के घुसपैठियों का पता लगाना और फिर उन्हें अपने देश से बाहर निकालना अत्यंत दुष्कर हो जाता है. क्योंकि तब मानवता के ऐसे तथाकथित ठेकेदार से खड़े हो जाते हैं जो मानवीय मूल्यों की और मानवाधिकार की बात करने लगते हैं. लेकिन तब वह यह भूल जाते हैं या जानबूझकर नहीं देखना चाहते हैं कि वह जिन लोगों की वकालत कर रहे हैं उन्होंने हमारे किसी देशवासी भाई के अधिकारों पर डाका डाला है. ऐसे लोगों के साथ हम किसी भी प्रकार की सहानुभूति कैसे रख सकते हैं. जब हमारे देश के किसी गरीब भाई के हिस्से का स्वास्थ्य शिक्षा और जीवन यापन संबंधी अधिकारों को घुसपैठियों द्वारा छीन लिया जाता है अपने ही क्षेत्र के मूल निवासी अप्रवासियों की वजह से अपनी ही जन्मदात्री भूमि में अल्पसंख्यक की दशा में आ जाते हैं तो यह एक भयावह स्थिति ओर इशारा करती है. लेकिन हमारे देश के नेता घुसपैठियों को भी सत्ता की सीढ़ी के रूप में देखते हैं और अपने देश वासियों के साथ गद्दारी करते हैं और इसे मानवता का रूप देने की रूप देने की कोशिश करते हैं.
एनआरसी मतलब नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन शिप. जुलाई 2009 में एक गैर सरकारी संगठन असम लोक निर्माण a p w ने राज्य में बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान करने और मतदान सूची से उनके नामों को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी इसके बाद कोर्ट ने इस काम को जल्द पूरा करने का आदेश दिया 31 दिसंबर 2017 को एनआरसी के पहले ड्राफ्ट का प्रकाशन करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने आर्डर दिया था.
एनआरसी एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत अप्रत्यक्ष रुप से देश में गैर कानूनी तौर पर रह रहे विदेशी नागरिकों को खोजने का प्रयास किया जाता है असम राज्य में अवैध रूप से रह रहे बांग्लादेशी नागरिकों का पता लगाने के लिए असम में एनआरसी का पहला मसौदा जारी किया गया है. जिसमें मार्च 24, 1971 की मध्य रात्रि के बाद से अवैध रूप से राज्य में घुस आए बांग्लादेशी नागरिकों की पहचान की कोशिश की जाएगी यह तारीख मूल रूप से 1985 के उस समझौते से मुकर्रर की गई थी जिसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार और असम स्टूडेंट्स यूनियन के बीच हस्ताक्षर किए गए थे
2001 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार भारत में 3084826 बांग्लादेशी अवैध रूप से रह रहे हैं यदि सरकारी और मीडिया रिपोर्टों को ध्यान में रखे तो वर्ष 2003 में भारत में दो करोड़ अवैध बांग्लादेशी अपना डेरा जमा चुके थे. इसी तरह बहुत से रोहिंग्या मुसलमान भारत के विभिन्न भागों में रह रहे हैं.
असम और पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश के बंगाली मुसलमानों के अवैध प्रवास के कारण इन राज्यों में जनसांख्यिकीय बदलाव देखने को मिल रहा है जिस वजह से इन भारतीय राज्यों में गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं. इन सीमावर्ती राज्यों में अवैध रूप से रह रहे विदेशियों के कारण ना केवल इन क्षेत्रों की जनसांख्यिकीय संरचना बदल गई है बल्कि भारत के लिए खतरनाक राजनीतिक और सामाजिक आर्थिक समस्याएं भी उत्पन्न हो गई हैं. भारत में बेहतर रोजगार के अवसर उपलब्ध होने और ज्यादा पारिश्रमिक मिलने के कारण बांग्लादेश से घुसपैठ को काफी बढ़ावा मिल रहा है. इसी प्रकार जाली दस्तावेजों की आसान उपलब्धता और भ्रष्ट नौकरशाही की मिलीभगत वोट बैंक की राजनीति के चलते इसको और भी सह मिल रही है. जब एक बार अवैध तरीकों से नागरिकता हासिल कर ली जाती है . तो भारत जैसे अत्यंत विशाल और अधिक आबादी वाले देश में किसी प्रकार के घुसपैठियों का पता लगाना और फिर उन्हें अपने देश से बाहर निकालना अत्यंत दुष्कर हो जाता है. क्योंकि तब मानवता के ऐसे तथाकथित ठेकेदार से खड़े हो जाते हैं जो मानवीय मूल्यों की और मानवाधिकार की बात करने लगते हैं. लेकिन तब वह यह भूल जाते हैं या जानबूझकर नहीं देखना चाहते हैं कि वह जिन लोगों की वकालत कर रहे हैं उन्होंने हमारे किसी देशवासी भाई के अधिकारों पर डाका डाला है. ऐसे लोगों के साथ हम किसी भी प्रकार की सहानुभूति कैसे रख सकते हैं. जब हमारे देश के किसी गरीब भाई के हिस्से का स्वास्थ्य शिक्षा और जीवन यापन संबंधी अधिकारों को घुसपैठियों द्वारा छीन लिया जाता है अपने ही क्षेत्र के मूल निवासी अप्रवासियों की वजह से अपनी ही जन्मदात्री भूमि में अल्पसंख्यक की दशा में आ जाते हैं तो यह एक भयावह स्थिति ओर इशारा करती है. लेकिन हमारे देश के नेता घुसपैठियों को भी सत्ता की सीढ़ी के रूप में देखते हैं और अपने देश वासियों के साथ गद्दारी करते हैं और इसे मानवता का रूप देने की रूप देने की कोशिश करते हैं.
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