समास

'समास' का शाब्दिक अर्थ है - संक्षेप|
जैसे - राजा का कुमार सख्त बीमार था|
          राजकुमार बीमार था|
उपर्युक्त वाक्य में हम देखते हैं का 'राजा का कुमार'का संक्षिप्त रूप 'राजकुमार' हो गया है|

अर्थात :

दो या अधिक शब्दों का अपने विभक्ति चिह्न अथवा अन्य प्रत्ययों को छोड़ कर आपस में मिल जाना ही
'समास' कहलाता है|
समास होने के पूर्व पदों के रूप को( बिखरे रूप)
' समास- विग्रह' और समास होने के बाद बने संक्षिप्त रूप को' समस्त पद' या ' सामासिक पद' कहते हैं|
समाज के मुख्यतः चार भेद हैं जिनके कई उपभेद हैं|

 १• अव्ययीभाव समास  :

इस समास का पहला पद प्रधान होता है और समस्त पद वाक्य में क्रिया विशेषण का काम करता है|इसी कारण से अव्ययीभाव समास का समस्त पद सदा लिंग, वचन और विभक्ति हीन रहता है|
क्योंकि उपसर्ग भी अव्यय होते हैं इसलिए उपसर्गाें से निर्मित समस्त पद अव्यय का ही काम करते हैं-
अव्ययीभाव समास अनेक अर्थों में निहित है-
• से लेकर/ तक    : आजन्म= जन्म से लेकर
                          आकंठ= कंठ तक
• क्रम                  :अनुज्येष्ट= जेष्ठ के क्रम से
• के अनुकूल/ के अनुसार : यथाशक्ति= शक्ति के                                                               अनुसार 
                                   यथा समय= समय के                                                               अनुकूल
• विप्सा                : प्रतिदिन= दिन-दिन
• के योग्य             : अनुरूप= रूप के योग्य
• अभाव               : निर्जन= जनों का अभाव
• पुनरुक्ति             : रातों-रात, हाथों-हाथ

अव्ययीभाव समास के लक्षण  :

अव्ययीभाव समास को पहचानने के लिए निम्नलिखित विधियां अपनाई जा सकती हैं-
• यदि समस्त पद के आरंभ में भर,निर्,प्रति,यथा,बे,आ,
ब,उप,यावत्,अधि,अनु, आदि उपसर्ग/ अव्यय हों |
• यदि समस्त पद वाक्य में क्रिया विशेषण का काम करें| जैसे-
उसने भरपेटभरपेट( क्रिया विशेषण) खाया( क्रिया)|

२• तत्पुरुष समास   :

 वह समास जिसका उत्तर पद या अंतिम पद प्रधान हो वहां तत्पुरुष समास होता है|
जैसे  - राजकुमार सख्त बीमार था|
इस वाक्य में समस्त पद ' राजकुमार' जिसका विग्रह है- राजा का कुमार| इस विग्रह पद में' राजा' पहला पद और' कुमार'( पुत्र) उत्तर पद है| प्रश्न है- कौन बीमार था, राजा या कुमार?
उत्तर मिलता है- कुमार| स्पष्ट तौर पर उत्तर पद की प्रधानता होने के कारण तत्पुरुष समास है|

३• द्विगु समास  :

इस समास को संख्यापूर्वपद कर्मधारय कहा जाता है| इसका पहला पद संख्या वाची और दूसरा पद संज्ञा होता है |इसके भी दो भेद होते हैं|

(क) समाहार द्विगु :

समाहार का अर्थ है -समुदाय ,इकट्ठा होना या समेटना|
जैसे-  पंचवटी=पाँच वटों का समाहार
        चौराहा= चार राहों का समाहार

(ख) उत्तरपद प्रधान द्विगु :

इसका दूसरा पद प्रधान रहता है और पहला पद संख्या वाची| इसमें समाहार नहीं जोड़ा जाता है|
जैसे- पंच प्रमाण= पाँच प्रमाण

नोट:

यदि दोनों पद संख्या वाची हो तो कर्मधारय समास हो जाएगा| जैसे- छत्तीस= छःऔर तीस

४•बहुव्रीहि समास

जिस समास मे कोई पद प्रधान न होकर( दिए गए पदों में) किसी अन्य पद की प्रधानता होती है| यह अपने पदों से भिन्न किसी विशेष संज्ञा का विशेषण है|
इस समाज के चार भेद होते हैं-

१. समानाधिकरण बहुव्रीहि :

इनमें जिन पदों का समास होता है, वे साधारणतः कर्ता कारक होते हैं; लेकिन समस्त पद द्वारा जो अन्य  उक्त  होता है , वह कर्म ,करण ,संप्रदान ,अपादान, संबंध अधिकरण आदि विभक्ति रूप में भी मुक्त हो सकता है|
जैसे- कलह है प्रिय जिसको=कलहप्रिय( कर्म मे उक्त)

२. व्यधिकरण बहुव्रीहि :

इसमें भी पहला पद कर्ता कारक का और दूसरा पद संबंध या अधिकरण कारक का होता है|
जैसे- शूल है पाणि में जिसके वह= शूलपाणि

३• तुल्ययोग या सह बहुव्रीहि-

जिसका पहला पद सह(साथ) हो; लेकिन सह के स्थान पर 'स' हाे| जैसे-
जो परिवार के साथ है वह= सपरिवार

४• व्यतिहार बहुव्रीहि :

जिसमें घात प्रतिघात सूचित हो |
जैसे- मुक्के- मुक्के से जो लड़ाई हुई =मुक्कामुक्की

५•द्वन्द समास-

जिस समास में दोनों पद समानतः प्रधान होते हैं| इसमें समुच्चयबोधक अव्यय का लोप कर दिया जाता है|
द्वंद समास तीन प्रकार के होते हैं-

१• इतरेतर द्वन्द -

इस कोटि के समास में समुच्चयबोधक अव्यय और का लो हो जाता है| जैसे -
                सीताराम= सीता और राम

२• वैकल्पिक द्वन्द -

जिस समास में विकल्प सूचक समुच्चयबोधक अव्यय वा, या,अथवा का प्रयोग होता है, जिसका समास करने पर लोप हो जाता है|
जैसे - धर्म या अधर्म=धर्माधर्म
         सत्य या असत्य=सत्यासत्य

३.समाहार द्वन्द -

इस कोटि के समास में प्रयुक्त पदों के अर्थ के अतिरिक्त उसी प्रकार का और भी अर्थ सूचित होता है|
जैसे - दाल रोटी वगैरह=दाल-रोटी

ध्यातव्य बिन्दुः-

जब दोनों पद विशेषण हो और उसी अर्थ में आए तब वह द्वंद ना होकर कर्मधारय हो जाता है|
जैसे - भूखा- प्यासा लड़का रो रहा है|
'यहां- भूखा' प्यासा लड़के का विशेषण है |अतः यहां कर्मधारय समास होगाहोगा|

             आधुनिक नवीन पद्धति 

प्रयोग की दृष्टि से समास के मुख्य रूप से तीन प्रकार माने गए हैं|

१• संज्ञा समास या संयोग मूलक समास 

इसे 'द्वन्द समास' अथवा ' संज्ञा समास' के नाम से जाना जाता है| इस प्रकार के समास में दोनों पदों पर संज्ञाएँ होती हैं| इसके सभी पद प्रधान होते हैं; परंतु जहां योजक चिन्ह नहीं लगा होता होता वहाँ तत्पुरुष समास होता है| जैसे -
           माता-पिता  =  द्वन्द समास
           गंगाजल     = तत्पुरुष समास

२• आश्रय मुलक या विशेषण समास 

यह प्रायः कर्मधारय समास होता है इसका दूसरा पद प्रधान होता है|जैसे -
                          कच्चामाल= कच्चा माल

३• वर्णन मुलक या अव्यय समास 

इस समास के अंतर्गत बहुव्रीहि और अव्ययीभाव समास आते हैं| इसमें प्रथम पद साधारणतः अव्यय और दूसरा पद संज्ञा का काम करता है |जैसे  -प्रतिमास |






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