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Showing posts from June, 2018

हम भारत के लोग

अपने बारे में बात करना किसे अच्छा नहीं लगता आइए आज हम अपने बारे में बात करते हैं. हम भारत के लोग सबसे पहले और सबसे ज्यादा सरकार को कोसते हैं लेकिन सरकार द्वारा दी गई सुविधाओं का ना केवल दुरुपयोग करते हैं बल्कि उन्हें नुकसान भी पहुंचाते हैं. हम बिजली ना होने की शिकायत करते हैं लेकिन बिजली चोरी के लिए हर जुगाड़ लगाने के लिए तैयार रहते हैं. हम साफ-सफाई का रोना रोते हैं लेकिन अपने घर का कचरा सड़क पर फेंकने से नहीं हिचकते पान और गुटखा खाकर दीवार पर थूकना और सार्वजनिक इमारत के सुनसान स्थान पर मूत्र त्याग करना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है हम नदियों और पहाड़ों को भी पूजते हैं लेकिन हमने इनका इतना दोहन किया है कि इनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया है. जंगल खत्म होते जा रहे हैं और नदियां सूखती जा रही है. हम समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार की बात करते हैं लेकिन हम में से कितने ही ऐसे हैं जो सुबह केवल इसलिए उठते हैं ताकि पड़ोसी के बगीचे से भगवान को चढ़ाने के लिए फूल चुरा सकें. यह सब तो कुछ भी नहीं है हमारे देश में स्त्री को देवी के रूप में पूजा जाता है उसे शक्ति का स्वरूप माना जाता है लेकिन हम बेटि...

आधी आबादी और पर्दा प्रथा

जब हम पर्दे की बात करते हैं तो यह एक कपड़े का आवरण भर नहीं होता. जिससे औरत का चेहरा ढक जाता है बल्कि यह एक ऐसा आवरण है जिससे उसका पूरा अस्तित्व और पहचान ढक जाती है. उसके गुड और अधिकार भी ढक जाते हैं, जो प्रकृति द्वारा उसे प्रदत्त है और एक सभ्य समाज ने कानून के रूप में हर स्त्री को प्रदान किया है यह एक पतला सा आवरण स्त्री जाति को को एक ऐसी खाई में धकेलता है जहां से उसका पूरी तरह से सामाजिक और मानसिक पतन हो जाता है और वह हर बुरी से बुरी स्थिति को भी अपनी नियति मानकर स्वीकार कर लेती है और उसका प्रतिकार तक नहीं करती. पर्दा एक इस्लामी शब्द है जो अरबी भाषा से फारसी भाषा में आया इसका अर्थ है ढकना या अलग करना. भारत में पर्दा प्रथा इस्लाम की देन है इस्लाम के प्रभाव से तथा इस्लामी आक्रमण के समय खुद के बचाव के लिए हिंदू स्त्रियों ने पर्दे को स्वीकार किया मुगल शासकों के समय में पर्दा प्रथा ने अपनी जड़ों को और गहराई में विस्तृत किया. ईशा से 500 वर्ष पूर्व रचित निरुक्त में पर्दा प्रथा का कोई साक्ष्य नहीं मिलता. प्राचीन वेदों में भी पर्दा प्रथा का कोई उल्लेख नहीं मिलता, अजंता तथा सांची की कलाकृतिय...

कम्युनल होने में बुराई क्या है

आजकल एक ऐसा आभासी माहौल बनाया जा रहा है कि जैसे पूरे देश में अराजकता की आग फैली हुई है जहां बहुसंख्यको द्वारा समावेशी समाजऔर संस्कृति के  ताने-बाने को छिन्न-भिन्न किया जा रहा है आप कोई भी न्यूज़ चैनल देखें वहां आपको तथाकथित बुद्धिजीवियों और सेक्यूलर विद्वानों की एक कतार मिलेगी जो आपको  समझाने की कोशिश करती हुई दिखाई देगी की आपके चारों ओर अराजकता फैली हुई है बहुसंख्यकों द्वारा अल्पसंख्यकों के हितों को चोट पहुंचाई जा रही सेक्यूलर विद्वान कह रहे हैं कि देश कम्युनल हो रहा है लेकिन कम्युनल होने में बुराई क्या है सृष्टि का हर जीव कम्युनल है और इसका मुख्य कारण सुरक्षा की भावना और समान जीवन पद्धति का होना है. क्या आप हाथी और शेर को एक साथ रख सकते हैं नहीं ना क्योंकि यह एक दूसरे के प्राकृतिक दुश्मनहैं. जहां पर जिस का पलड़ा भारी होगा वह दूसरे को चोट पहुंचाएगा.  विपरीत स्वभाव के जीव एक साथ नहीं रह सकते इससे उनका अस्तित्व ही खतरे में पड़ जाएगा. संख्याबल में सुरक्षा की भावना छुपी हुई है जिसे हम कम्युनिटी का नाम देते हैं  जिस प्रकार एक स्पीशीज के जीव एक साथ रहते हैं उसी प्रकार ...

अभिभावक और बच्चे

हमारे आसपास हमेशा ही कितना कुछ प्रतीत होता है छोटी बड़ी कितनी बात है जो हमारे जीवन और व्यवहार को किसी न किसी प्रकार प्रभावित करती हैं और हमें सोचने पर विवश करते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है़ . हर माता-पिता को एक आज्ञाकारी संतान की अभिलाषा होती है जीवन में एक बालक वही सोचता और बनता है जैसा उसके सामने होता है़ ़ माता पिता और परिवार का बहुत बड़ा योगदान होता है बच्चे के भविष्य निर्माण में यहां माता पिता बच्चे के व्यावहारिक जीवन के गुरु की भूमिका में होते हैं अगर माता-पिता अपने जीवन में उच्च नैतिक मूल्यों का पालन नहीं करते हैं तो फिर वह ऐसा कैसे सोच सकते हैं कि उनकी संतान में वह गुण होंगे आखिर जो चीज मिली ही नहीं वह आएगी कहां से़ अंत में बस इतना ही कि आज के युग में भी श्रवण कुमार तो सबको याद है लेकिन उसके माता-पिता किसी को याद नहीं है जिन्होंने उन्हें इतने ऊंचे नैतिक मूल्य प्रदान किए  ़